Sunday, November 6, 2011

70-किस नाम से पुकारूँ उन्हे? ही मैन ..................... नही नही सुपर मैन...................... नही ये भी जंच नही रहा है...................हाँ वो टी वी का विज्ञापन क्या है...................हाँ माचो मैन। हाँ तो हमारे मिस्टर माचो मैन कल मंडली मे अपनी मर्दानगी के किस्से बखान रहे थे कि कितनी महिलाओं के संग उनके अंतरंग संबंध रहे है और अपने इन दावों को वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित करने के लिए विभिन्न नस्ल की महिलाओं के खास अंगो की कुत्सित व्याख्या कर रहे थे। आज बड़ा आश्चर्य हुआ कि मिस्टर माचो मैन ने अपने परिवार की करवा-चौथ वाली तस्वीरें फेसबुक पे अपलोड की थी। अब उनके लिए क्या नाम उपयुक्त होगा............?

71-कुछ दिन पहले जब वह कहीं स्कूटर से जा रहा था तब उसने एक बाइक और साइकिल वाले की जोरदार टक्कर देखी थी, जिसमे दोनों ही जख्मी हुए थे लेकिन उस समय वह बिना रुके ही आगे बढ़ गया था। एक-दो दिन पहले भी जब पिता का फोन आया था कि “बहुत दिनों से घर नही आए हो आ जाओ”, तो भी उसने बच्चों के स्कूल के नाम पर पिता को टाल दिया था। आज बस मे एक प्रौढ़ महिला जब उसकी सीट के बगल मे खड़ी हुई तो उसने आंखे बंद कर ली ताकि उसे खड़ा न होना पड़े। आंखे बंद करने पर उसे अजीब सा एहसास हुआ कि वो धीरे-धीरे एक बोन्साई बनता जा रहा है।

72-गरीबदास अपनी निर्धनता से पीड़ित था। अपनी दशा से दुखी होकर दीपावली की रात उसने कातर स्वरों से माँ लक्ष्मी की आराधना की। माँ द्रवित होकर उसके सड़क किनारे पड़े सीवेज पाइप वाले निवास स्थान मे प्रकट होकर बोली “बेटा, मांगो क्या मांगते हो”? वो ऐसे चमत्कार के लिए तैयार न था अतः बौखलाहट मे मांग कर बैठा “माँ, मेरा ये घर स्वर्णाभूषणों से भर दो”। माँ ने कहा “मूर्ख, मांगना है तो अपनी औकात मे ही माँग”। लेकिन वो जिद कर बैठा, “माँ, मेरी यही इच्छा है, पूरी करना है तो करो नही तो रहने दो”। माँ ने कहा, “तथास्तु” और वो अंतर्ध्यान हो गयी। उसका निवास मे कनक वर्षा हुई और घर स्वर्णाभूषणों से भर गया। ऐसी बातें कहाँ छिपती है, जो अब छिपती सो अगले ही दिन उसके घर पे रेड पड़ गयी। पुलिस, आयकर, नगर-निगम सभी पहुँच गए। “ये आभूषण कहाँ से आए”, “इन्हे खरीदने के लिए पैसे कहाँ से आए”, “टैक्स जमा करते हो या नही”, “फार्म 16 दिखाओ”, “कहाँ से खरीदे”, “रसीद दिखाओ”, “इस पाइप मे क्यों रहते हो”, “भारत के नागरिक होने का सबूत दो”, “किस आतंकवादी ग्रुप से हो” आदि-आदि। वो गरीब क्या उत्तर देता और जो उत्तर भी दिया उस पर विश्वास कौन करता? बेचारा गरीबदास...............
73-कल डीएम साहब ब्लॉक के दौरे पर आए और सभी अधिकारियों के साथ एक बैठक की। हमारे बीईओ साहब (ब्लॉक एजुकेशन ऑफिसर) मीटिंग इत्यादि से घबराने वाले ठहरे, सो दो घूंट लगा ली और एबीईओ (असिस्टेंट ब्लॉक एजुकेशन ऑफिसर) को लेकर पहुँच गए मीटिंग मे। पीडबल्यूडी, बिजली और सिंचाई के बाद शिक्षा विभाग बड़ा ही महत्वपूर्ण महकमा है सो उनका नंबर भी जल्दी लग गया।
-हूँ, गावों मे स्कूलों को चेक करने जाते हो या यहीं बैठे-बैठे सब रिपोर्ट ओके है।
-जाता हूँ। क्यों, है न एबीईओ साहब?
-लेटेस्ट कहाँ गए थे?
-गन्ने के पुरवा मे। क्यों, है न एबीईओ साहब?
-स्कूल मे कितने कमरे थे?
-तीन या चार। क्यों, है न एबीईओ साहब?
-तीन या चार, ठीक-ठीक बताओ। गए भी थे या यहीं बैठ कर टूर रजिस्टर भर दिया?
-नही साहब। तीन! तीन ही कमरे थे। क्यों, है न एबीईओ साहब?
- ये “क्यों, है न एबीईओ साहब? है न एबीईओ साहब?” क्या लगा रखा है? तुम्हें पता होना चाहिए कि एबीईओ को?
-जी मुझे साहब।
-अच्छा वहाँ मिड डे मील की क्या पोजीशन थी?
-बढ़िया साहब। क्यों, है न एबीईओ साहब?
-मिड डे मील तुम्हारे सामने पका था?
-जी साहब। क्यों, है न एबीईओ साहब?
-कौन पका रहा था?
-ब्राम्हण साहब। क्यों, है न एबीईओ साहब?
-क्यो वहाँ भोजन माता कहाँ गई?
-साहब वो सवर्णों का गाँव है। भोजन माता निचली जात की है। क्यों, है न एबीईओ साहब?
- फिर! “क्यों, है न एबीईओ साहब? है न एबीईओ साहब?” क्या लगा रखा है? बॉस कौन है तुम या एबीईओ?
-मैं साहब। क्यों, है न एबीईओ साहब?
-तुम्हें पता है मिड डे मील योजना का उद्देश्य क्या है?
-जी साहब। स्ट्रेंथ बढ़ाना। क्यों, है न एबीईओ साहब?
-कैसी स्ट्रेंथ बढ़ाना?
- बच्चों की शारीरिक ताकत बढ़ाना। क्यों, है न एबीईओ साहब?
-क्यों न तुम्हें सस्पेंड कर दिया जाय? क्यों, है न एबीईओ साहब? डीएम किटकिटा कर बोला।
-साहब अब चार महीने रिटायरमेंट के बचे है। चार्ज तो एबीईओ साहब को ही मिलना है, तो वही सब काम देख रहे है। मैं तो अब अपनी पेंशन की फाइल दुरुस्त करवाने मे लगा हूँ। आगे जैसी आपकी इच्छा। क्यों, है न एबीईओ साहब?
62-दोस्त द्वारा 50 रु अंदर टेबल
आज कल जब एयरटेल का विज्ञापन देखता हूँ तो हॉस्टल के यादगार लम्हों मे से एक लम्हा बरबस ही याद आ जाता है।
चल यार, नैनीताल चलते है, कानपुर से मेरा पुराना दोस्त भी आया हुआ है, तीनों साथ मौज करेंगे।
मित्र, महीने की अंतिम तारीखे चल रही है। अभी घर से ड्राफ्ट आने मे वक्त है। ऐसे मे ठन ठन गोपाल की तरह नैनीताल जाऊंगा तो क्या अच्छा लगेगा? बल्कि तेरे ऊपर एक और बोझ बन जाऊंगा।
अबे रहोगे कंगले ही। बस तुम उठ लो, रुपये-पैसों की फिक्र मत करो।
दोस्तों को न अब मना कर पाता हूँ न तब मना कर पाया। तो फिर हम शाम तक नैनीताल की हसीं वादियों मे पोस्ट हो चुके थे। किराया-भाड़ा, खाना-होटल, दारू-सिगरेट हर जगह हाथ कसमसा के रह जा रहे थे। खैर अगले दिन सुबह वे दोनों ब्रेकफ़ास्ट के लिए बाहर जाने को तैयार हो गए। मैंने बहाना मारा “ यार थकान हो रही है, अभी तुम लोग हो आओ”। लेकिन दोस्त तो ठहरे दोस्त, थर्ड डिग्री की आजमाइश करते हुए रेस्टोरेन्ट तक ले ही गए। नाश्ता खत्म होने के बाद दोस्त ने टेबल के नीचे से चुचाप मेरे हाथ मे सौ का नोट थमा दिया। उसके एक दोस्त के सामने दूसरे दोस्त के आत्म-अभिमान की रक्षा हो गई थी। सच है “हर एक फ्रेंड जरूरी होता है”।

63-उंह, हर साल बच्चों के कपड़ों का ढेर लग जाता है। न रखते बनता है न फेंकते। पहले के जमाने मे तो पुराने कपड़ों के बदले बर्तन मिल जाया करते थे, अब तो वो बर्तनवालियाँ भी नही दिखतीं। दीपावाली की तैयारी मे घर की सफाई करते हुए श्रीमती जी भुनभुना रही थीं।
तो कामवाली को दे दो, उसके बच्चे भी तो अपने जितने हैं। मैंने सहानुभूति दर्शाने के लिए सुझाव दिया।
अरे कहाँ लेती है वो? एक बार कहा था तो सुनाते हुए बोली कि दीदी मैं तो बच्चों को नए कपड़े ही पहनाती हूँ। कसम से खून खौल गया था मेरा तो उस समय।
तो ऐसा करो गठरी बांध के रख दो, कोई भिखारी आएगा, उसे दे देना। कुछ आशीष भी मिल जाएगा।

64-सौभाग्य से अगले दिन एक भिखारी लड़का आ गया। मैंने झट से उसे पुराने कपड़ों की पोटली थमा दी। उसने उसे उलट-पलट कर देखा और बोला “साहब, दस रुपया भी दे दो, छोटे भाई के लिए पटाखे भी ख़रीदूँगा”। मैंने उन कपड़ों को घर से निकालने की गरज से दस रुपये उस लड़के के हाथ मे रख दिये। वो लड़का पोटली लेकर चला तो लेकिन गली के मुहाने पे ही उसे छोड़ कर चल दिया। कुछ ठगे जाने और कुछ अपमान की भावना से क्रोधित होकर मैंने दौड़ लगा कर उस लड़के को पकड़ा। उसने पोटली छोडने का जो कारण बताया तो मैं दंग रह गया “साब हमारे धंधे की यूनिफ़ार्म ही चीथड़े हैं, अच्छे कपड़े पहनने पे भीख कौन देगा”।

65-सर, ये देहजीवा क्या होता है?
देहजीवा होता नही होती है।
अच्छा, देहजीवा क्या होती है?
गंदी औरते होती है जो अपने देह के व्यापार से जिंदा रहती है।
अच्छा, बुद्धिजीवी क्या होते है?
जो अपने बुद्धि के उपयोग से जीवन निर्वाह करते है।
......या अपने बुद्धि के व्यापार से? छात्र ने अपनी शंका प्रकट की।
भरी कोचिंग क्लास मे वो अपने को नंगा महसूस कर रहे थे।

66-स्थान: बच्चों के स्कूल का एनुवल फंक्शन।
माहौल: माइक मे कुछ तकनीकी कमी आने के कारण रह-रह कर तेज सीटी की आवाज आने से बच्चों के आवाज दब जा रही थी, जिससे पैरेंट्स मे बोरियत का वातावरण।
उपरोक्त वातावरण मे बैठा हुआ अपने बच्चे के कार्यक्रम आने का इंतजार कर रहा था। मेरी तरह अब वहाँ वही अभिववक शेष थे, जिनके बच्चों का कार्यक्रम अभी तक नही हुआ था। माहौल के भारीपन को दूर करने लिए पड़ोस मे बैठे सज्जन ने बातचीत का सिलसिला आरंभ किया:
आप का बच्चा किस क्लास मे है?
सेकेंड मे और आपका?
थर्ड मे।
ये स्कूल वाले भी वर्किंग डेज़ मे प्रोग्राम रख देते है। अब ऑफिस अटेंड करें या ये प्रोग्राम एंजॉय करें? मैंने शिकायती लहजे मे कहा।
आप क्या करते है?
क्लास 1 वेटेनेरी ऑफिसर हूँ। “क्लास 1” पर थोड़ा ज़ोर देकर जवाब दिया।
अच्छा, लेकिन विभाग कौन सा है?
पशुपालन विभाग। मैंने उनकी बुद्धि पे तरस खाते हुए और ये जाहिर भी करते हुए जवाब दिया।
आप सर्विस मे हैं या बिजनेस मे ? मैंने बातचीत के सिलसिले को जारी रखने के लहजे से पूछा।
गवर्नमेंट जॉब मे ही हूँ। वे शायद मेरे पहले दिये गए गर्वोक्त उत्तर से चिढ़ गए थे।
अच्छा, अभी जो 7% डी.ए.लगना था, क्या वो लग गया? मैंने ये सोच कर पूछा था कि जैसे औरतों को कपड़े-गहने की बातों मे रुचि होती है वैसे ही आदमियों को वेतन इत्यादि की बातों मे, शायद इसी बहाने बातचीत चलती रहे। लेकिन जो जवाब मिला वो मुझे आईना दिखा गया: “मैं क्लास 1 विभाग मे क्लास 3 कर्मचारी हूँ, इसलिए वेतन और डी.ए. की ज्यादा चिंता नही करता हूँ”।
क्या समझे?

67-बच्चों के लिए गुब्बारे ले लो।
नही बेटा, नही चाहिए। मैंने झुँझलाते हुए कहा।
पापा ले लो न।
बच्चों को देखते ही घेरने लगते है। मैं मन ही मन बुदबुदाया।
क्या करोगे बेटे, दस मिनट मे ही फूट जाएगा।
ऊँSSS ......... छोटा बच्चा मचला।
ले लो, दस के तीन है।
पाँच मे दो दोगे। मैं मोलभाव पे उतार आया।
अच्छा ले लो।
उसके जाने के बाद बड़े बच्चे ने दो मिनट के भीतर ही मोलभाव मे मेरी जीत के भाव को गुब्बारे सा फोड़ दिया “पापा, ये गुब्बारे वाले तो हमारे ही बराबर है, क्या इनका मन इन गुब्बारों से खेलने का नही होता होगा”?

68-तो वहाँ एक बहुत बड़ा दलदल था, जिसमे कीचड़ ही कीचड़ भरा हुआ था। उस दलदल के चारों तरफ एक बस्ती थी। बस्ती वाले उस कीचड़ और उससे उठती बास के साथ ही जीने के अभ्यस्त थे। एक दिन उस बस्ती के चार-छः लोगों ने एक टीम बनाई कि इस दलदल को साफ किया जायगा। फावड़ा-तसला इकट्ठा करके पहला फावड़ा ही चलाया था कि छपाक से कीचड़ के छीटे उनके दामनों पे जा गिरे। अब बस्ती के ही कुछ लोग हल्ला मचाने लगे कि ये तो पहले से ही कीचड़ मे सने है ये क्या दलदल साफ करेगे? टीम के कुछ लोग कीचड़ के छीटो से घबरा कर बैठ गए तो कुछ का प्रयास जारी है। आगे क्या होगा?

69-देहरादून – ऋषिकेश यात्रा: एक लघु नाटक
पात्र परिचय
पाँच नेहायें- पाँच तरुणियाँ, जो पीछे की सीट पे बैठी है।
रजत: एक तरुण, जो बोनट पे बैठा हुआ है।
कंडक्टर: जो कंडक्टर की सीट पे ही बैठा है।
पति, पत्नी और दो बच्चे: जो कंडक्टर के पीछे की सीट पे बैठे है।
बंगाली बाबू: जो पति, पत्नी और दो बच्चों वाली सीट के बगल मे बैठे है।
दुखी राम: जो बोनट के बगल वाली सीट पे बैठा है।
वृद्धा: पांचों नेहाओं की अगली सीट पे दुबकी हुई है।
कंडक्टर के ऋषिकेश-ऋषिकेश चिल्लाने और सुर्रSSS से सीटी बजाने पे बस चल पड़ी।
नेहा न.1: अब तो ऋषिकेश पहुँच ही जाएंगे। ही ही ही
चारों नेहा: ही ही ही
रजत को कुछ बोलना नही है सिर्फ बैठे-बैठे नेहाओं को देखते हुए मंद-मंद स्मित फेंकना है।
पांचों नेहा : ही ही ही
कंडक्टर: टिकट बोलो टिकट
पांचों नेहा: पाँच टिकट ऋषिकेश ही ही ही
पति: दो फुल, एक हाफ ऋषिकेश
कंडक्टर: छोटा कितने साल का है?
पति: साढ़े तीन साल। (अगर भारतीय बच्चों की हेल्थ देखनी हो तो बस मे ही देखनी चाहिए, कसम से तीन साल का बच्चा भी छः साल का लगता है।)
पत्नी: क्या जरूरत थी बड़े वाले की टिकट लेने की। पैसे तो तुम्हारी जेब से बाहर उछलने को बेताब रहते है।
पति: (बेचारगी से) अरे बस मे तो शांत रहा करो।
पत्नी: अपने पैसों को आग लगाओ या पानी मे फेकों, मेरे बला से।
दुखीराम: जौलीग्रांट एक टिकट (सौ रुपए देते हुए)
कंडक्टर: 11 रुपए छुट्टे दो।
दुखीराम: आज नही है।
कंडक्टर: सुर्रsss सुर्रsss , नीचे उतरो-नीचे उतरो।
बंगाली बाबू: ये बोस तुम्हारे बाप का है, जो जहां चाहोगे किसी को उतार दोगे?
कंडक्टर: आप बीच मे बोलने वाले कौन हो?
बंगाली बाबू: एक यात्री हूँ, लेकिन तुम किसी को उतार के देखो। वो पूरे पैसे देता है तुमको, उसका टिकट काटो, तुम्हारे पास छुट्टा नही है तो वो उतर कर देगा।
कंडक्टर: ये जौलीग्रांट वाले 1 रुपए अक्सर नही देते है।
बंगाली बाबू: और जब ऋषिकेश का टिकट 29 रुपया था तो कितने कंडक्टर 1 रुपया वापस करते थे? बेकार की बोत करता है।
पांचों नेहा: ही ही ही
कंडक्टर: एक दो तीन...........................उनतीस। अरे एक टिकट किसने नही लिया है। बूढ़ा माई तुमने टिकट लिया?
वृद्धा: नही
कंडक्टर: तो बोलती काहे नही हो? कबसे गला फाड़ रहा हूँ। कहाँ जाना है?
वृद्धा: जाना तो सबको अंत मे वही है लेकिन बेटा दस रुपए मे तुम जहां तक ले जा सकते हो ले चलो।
जीवन यात्रा जारी है।
49-वो देवी के बहुत बड़े भक्त थे। पूरी नवरात्रि लौंग पे ही रह जाते थे। आज महाष्ठमी के अवसर पावन अवसर पर मंदिर से देवी की पूजा-अर्चना करके निकले ही थे कि एक तेजी से जाती स्कूटर से उनके झक सफ़ेद कुर्ते-पाजामे पे सड़क के किनारे इकट्ठे पानी की छीटे पड़ गए। क्रोधावेश मे उनके मुख से धाराप्रवाहिक माँ-बहन की गालियां उच्चारित होने लगी।

50-आज उनको नौ कन्याओं को भोग लगा कर ही नवरात्रि व्रत का उद्यापन करना था। लेकिन शहर मे समस्या नौ कन्याओं को इकट्ठा करने की थी (शायद शहरो मे बिगड़ता लिंगानुपात एक वजह हो)। आस-पड़ोस मिला कर कुल चार कन्याएँ ही वो इकट्ठी कर पाये थे। शेष पाँच कन्याएँ उन्होने पास की बस्ती की घूम रही बालिकाओं को बुला कर पूरा कर लिया। पहचान की चार कन्याओं को भोजन स्टील की नई थाल-कटोरी मे मिला और बस्ती की पाँच कन्याओं को थर्माकोल की प्लेट मे। जय हो देवी माँ के भक्तों की!
51-वो जमीदोंज मकानों के सामने उकड़ू बैठा हुआ जमीन पे लकीरें खींच रहा था, मानो वहाँ नक्शा खींच कर उसमे अपना मकान खोज रहा हो। जलजला आए 48 घंटे बीत चुके थे लेकिन मलबे से अभी भी शव निकल रहे थे।
चलो भाई, यहाँ से चलो.......
......................................
कब तक यहाँ बैठे रहोगे.......
......................................
घर मे कौन-कौन था.............
फिर वही चुप्पी लेकिन उसकी निर्विकार दृष्टि प्रश्नकर्ता के चेहरे पे टिक गई।
गहरे सदमे मे है.................
अरे देखो, संभाल के, देखो माँ मरते समय भी बच्चे को कैसे दुबका कर बचाने की कोशिश कर रही थी।
वह बिजली की तरह दौड़ कर वहाँ पहुँचा। उसके भीतर का जलजला चीख़ों के रूप मे बाहर निकलने लगा था।

52-जगह-जगह मेलों-ठेलों मे घूमते हुए बच्चो के खिलौने बेचना ही उसका पेशा था। तीर-तलवार, गदा, हाथी-घोड़े, भोंपू-सीटी तरह-तरह के मनभावन खिलौने। हर माल पाँच रुपये, पाँच रुपये, पाँच रुपये! बंबई से आया मेरा दोस्त, बच्चों तेरे लिए! हाथी लाया, घोड़े लाया बच्चों तेरे लिए! हर माल पाँच रुपये, पाँच रुपये, पाँच रुपये! वो तरह- तरह से गाकर-नाचकर बच्चों को रिझाया करता था और बच्चे भी उसकी फेरी पर आकर उसे छेडते थे। ताऊ हाथी कितने का है, ये बोलेगा भी। चाचा तीर-तलवार और गदा दोनों पाँच मे दोगे? इधर चार लड़के उसे बातों मे फसाते थे और उधर दो लड़के खिलौने निकाल के भाग खड़े होते थे। वो पीछे से चिल्लाता था अरे करमजलों! बाप ने चोरी सिखायी है, गरीब को सताते हो, शरीर मे कीड़े पड़े तुम्हारे और लड़के थे कि हसते- खिलखिलाते भाग जाते थे। अब तो वो बुड्ढा हो गया था। आज दशहरे के मेले मे भी उसने फेरी लगाई थी। लड़को का एक झुंड फिर आया और उसी तरीके से कुछ लड़के उसके खिलौने ले भागे। उसने फिर से चिल्ला-चिल्ला कर गालियां दी- अरे करमजलों! बाप ने चोरी सिखायी है, गरीब को सताते हो, शरीर मे कीड़े पड़े तुम्हारे। लेकिन मन मे ही बुदबुदाया “तुम्हारे बचपन सलामत रहें, यूं ही हसते-खिलखिलाते रहो, मेरा क्या, आज के तो बत्तीस रुपये कमा ही चुका हूँ”।

53-क्या करूँ? नींद नही आ रही है। पति और बच्चे घोड़े बेच कर सो रहे है। मेरा तो किसी को ध्यान ही नही है, जीऊँ या मरूँ। लेकिन करूँ तो क्या करूँ, रात के एक बज रहे है। चलो टी वी ही देखते है, लेकिन वो तो दिन भर देखा ही था लेकिन दूसरा चारा ही क्या है? अरे वही प्रतिज्ञा, बड़ा उबाऊ है। दूसरा चैनल, ऊँह वही क्राइम पेट्रोल, ये सब देख लूँगी तो तीन दिन तक डर के मारे ही नींद नही आएगी और ये सब देखो तो पति भी कितना डरावना लगता है। चलो अगला चैनल, राम राम एफ़ टी वी, ये तो औरतों को न जाने क्या समझते है, पता नही जिंदा भी समझते है या निर्जीव पुतले मानते है। चलो कुछ और ट्राई करती हूँ, उफ ये डिस्कवरी, मुए वही शेर को किसी भैंसे को नोच-नोच कर खाते दिखाते है। नेक्सट चैनल, ये क्या रात भर टेली मार्केटिंग करते रहते है, अभी ऑर्डर करने पर एक्सरसाइज मशीन के साथ बैलेन्स एक महीने प्रोटीन डाइट सप्लीमेंट मुफ्त, बकवास। अरे ये क्या आ रहा है, लाल किताब के उपाय! हूँ ये देखती हूँ शायद नींद का भी कोई उपाय पंडित बता दे। ज़िंदगी कितनी बोर है?

54-आज का अखबार उठाते ही उसकी रूह मे झुरझुरी दौड़ गई। बैंक ने महंगाई रोकने के लिए किए गए उपाय के क्रम मे होम लोन पर 0.5% ब्याज दर बढ़ा दी थी। इसका सीधा मतलब था ई एम आई मे बढ़ोत्तरी यानी होम लोन का महंगा होना यानी दो कमरे के मकान के लिए लिए गए लोन की ईएमआई अब 17000 से बढ़ कर 18000 हो जाना। उसने अगले पेज पलटे तो देश के धनकुबेरों के महलों की खबरे छपी थी। कई-कई तल्लों वाले महल, जिनमे इतने एशों-आराम के साधन उपलब्ध थे कि उसके आगे इन्द्र की अमरावती भी फेल। फिर अगले पन्ने पर ग्लोबल विलेज की कुछ चर्चा छपी थी। ग्लोबल विलेज शब्द पढ़ते ही उसका मुंह कसैला हो गया- “अमीरों का एक और सपने बेचने वाला शब्द। हमारा बचपन भी गाँव मे ही बीता था, लेकिन वहाँ इतनी अधिक आर्थिक विषमता नही थी। हमारे पास फूस के छप्पर होते थे तो गाँव के साहूकार के पास खपरैल का मकान ही होता था”। वह फिर से बढ़ी ईएमआई को पूरा करने लिए सोचने लगा था कि दूध का बजट कम करे या सब्जी का।



56-मैं कक्षा तीन मे था जब माँ ने डॉ राजेन्द्र प्रसाद के बचपन की कहानी सुनाई थी कि वो पढ़ने मे इतने कुशाग्र बुद्धि थे कि प्रश्नपत्र मे लिखा था कि किन्ही आठ प्रश्नों के उत्तर दे तो उन्होने सारे प्रश्नों के उत्तर दे दिये और अंत मे लिख दिया किन्ही आठ प्रश्नों के उत्तर जांच ले। मैं इससे बड़ा प्रभावित हुआ और गणित की परीक्षा मे सारे प्रश्न हल करने के बाद लिख दिया किन्ही आठ प्रश्नों के उत्तर जांच ले और अध्यापक ने चुन-चुन कर वो उत्तर जाँचे जो गलत थे। ये मेरा ज़िंदगी का पहला सबक था कि किसी की नकल न करना, मारे जाओगे।



57-माँ आज बहुत पीड़ा हुई, जब डॉ मेरी चीर-फाड़ कर रहा था। मैं उम्मीद कर रही थी कि आप मुझे बचा लोगी लेकिन आप मेरी मदद को नही आई। मै आपसे पूछ भी नही पायी कि माँ मेरी गलती क्या थी कि आपने मुझे अपने से इतना दूर कर दिया। मै कितना उल्लासित थी कि जब आपसे मिलूँगी तो आपकी अंगुलियाँ पकड़ कर चूमूंगी और ............और पापा से मिलने को भी कितना उत्सुक थी, सोचती थी पापा को अपनी नर्म हथेलियों से हौले-हौले गुदगुदाउगी तो कितना आनंद आयेगा। मैंने माँ-पापा के बारे मे कितना सुना था कि वो तो भगवान से भी बड़े होते है लेकिन ये मेरा ही दुर्भाग्य था कि आप लोगो के दर्शन भी न कर पायी। माँ, आप और पापा तो इतना पड़े-लिखे हो तो क्या इतना बता सकते हो कि पहले तो बड़े होने के बाद लड़कियों को परिवार से दूर किया जाता था लेकिन अब जन्मने के पहले ही क्यूँ?

58-शुक्ला जी राज्य सरकार द्वारा वित्तपोषित अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के छात्रों के कोचिंग इंस्टीट्यूट मे अध्यापक थे। सुकुमार वल्द हीरा लाल “आई.ए.एस.” भी उस इंस्टीट्यूट के भाग्यशाली विद्यार्थी थे, जिनका चयन प्रशासनिक सेवा मे हो गया था। शुक्ला जी ने बधाई देने के बाद तंज़ कसा “अरे भाई सुकुमार, आप तो क्रीमी लेयर वाले थे, आपको तो कुछ गुरुदक्षिणा देनी चाहिए”। सुकुमार भी कम न थे, “कही अँगूठा तो नही चाहिए गुरु जी”। “दे सकते हो” शुक्ला जी ने भी कड़वाहट बरकरार रखते हुए पूछा और सुकुमार ने ठेंगा दिखा दिया।

59-अपने यहाँ मुफ्त मे सलाह देने वाले जीव बहुतायत मे पाये जाते है। ऐसे ही एक श्रीमान जी आज मुझसे टकरा गए और छूटते ही सलाह मेरी तरफ उछाल दी “श्रीवास्तव जी, अपनी पुरानी स्कूटर निकाल कर एक्टिवा ले डालो”। मैंने पूछा “क्यों, क्या अब पाँच हजार मे मिलने लगी”? वो अचकचाए लेकिन फिर संभलते हुए बोले “अरे नही, उसमे किक नही लगानी पड़ती, सेल्फ स्टार्ट है”। मैंने प्रतिवाद किया “श्रीमान जी, आप मेरी किक की कीमत 40000-45000 हजार की आँक रहे है। मेरे हिसाब से ये फ्री है, सैंपल दूँ क्या”? फिर वो नज़र नही आए, ऐसा क्यों?

60-पहली कसम
ये बारह साल पहले की शरद ऋतु की एक खूबसूरत सुबह थी जब मैं अपने कंट्रोलिंग अफसर के साथ अपने कक्ष मे बैठा हुआ अपने कार्य निपटा रहा था। अचानक एक परेशानहाल अधेड़ महिला कमरे मे घुसी।
विकास श्रीवास्तव जी कहाँ है?
हम दोनों की प्रश्नवाचक निगाहें उन पर अटक गई।
यहाँ तो कोई विकास श्रीवास्तव नही है। कुल जमा एक श्रीवास्तव है और वो ये है। मेरे कंट्रोलिंग अफसर ने मेरे तरफ इशारा किया।
बाबू, मैं सीतापुर से अपने बेटी-दामाद से मिलने आई थी। उनका कुछ पता नही चल रहा है।
जी, मैं तो इस ऑफिस मे नया हूँ, मुझे तो कोई ज्यादा जानकारी नही है। मैंने कहा।
इस ऑफिस मे तो पिछले पाँच सालों से कोई विकास श्रीवास्तव नही है। आप गलत जगह आ गई है, उनका कोई पता तो आपके पास होगा। मेरे कंट्रोलिंग अफसर ने उनसे कहा।
नही, मुझे बस इतना पता है कि वो डेरी मे काम करते है।
तो, यहाँ तो कोई विकास श्रीवास्तव नही काम करते और पूरे अमरोहा जिले मे कोई विकास श्रीवास्तव डेरी मे नही है, इतना मुझे अच्छी तरह पता है। मेरे कंट्रोलिंग अफसर ने जवाब दिया।
अब मैं क्या करूँ, मेरे तो सारे पैसे भी खत्म हो गए। ये कहकर वो रोने लगीं।
पता नही पैसे की बात सुनकर या व्यर्थ की बातें सुनकर मेरे कंट्रोलिंग अफसर ने अपना सिर अपनी फाइलों मे ऐसे झुका लिया जैसे वो महिला वहाँ उपस्थित ही न हो। उनके इस अप्रत्याशित व्यवहार पर मुझे बड़ा क्षोभ हुआ। वो महिला भी उनके इस बदले रूख को देखकर मेरे तरफ मुखातिब हुई।
बाबू, ये मेरी बालियाँ रख लो और मुझे पाँच सौ रुपये दे दो, मेरे पास वापस जाने के भी पैसे नही है। वो अपनी बालियाँ उतारती हुई बोली।
अरे, आप अपनी बालियाँ अपने पास ही रखें। मेरे पास दो सौ रुपये ही है, ये रख ले। इतना आपके किराये के लिए और रास्ते के लिए काफी होगे। अभी एक ट्रेन लखनऊ जाने वाली है, उससे सीतापुर तक निकल जाइए। मैंने उससे सहानुभूतिपूर्वक कहा। वो मुझे आशीष देते हुए चली गई।
अजीब अहमक़ हो, इतनी दरियादिली दिखाने की क्या जरूरत थी? उसके जाते ही मेरे कंट्रोलिंग अफसर ने मुझसे कहा। दरअसल आज से बारह साल पहले दो सौ रुपये मेरी तनख्वाह के अनुपात मे बहुत अधिक थे।
सर वो कितनी परेशान थी। उसकी मदद करना मेरा फर्ज़ था।
अभी जवानी है और शादी भी नही हुई है, इसीलिए ये दरियादिली है। लेकिन वो औरत तुम्हें ठग गई है और मेरे बात पर विश्वास न हो तो स्टेशन पास मे ही है, जाकर देख लो वो वहाँ नही मिलेगी। मैं भी उनका चैलेंज स्वीकार कर स्टेशन पर चला गया। अभी ट्रेन नही आई थी लेकिन वो महिला टिकट काउंटर से लेकर पूरे प्लेटफार्म पे कहीं भी नही दिखाई दी। मैंने ट्रेन के आने का इंतजार किया, ट्रेन आई और चली भी गई लेकिन उन मोहतरमा के दर्शन सुलभ नही हो सके। मैं बुझे मन से ऑफिस वापस आ गया। मेरी पिटी हुई सूरत देखकर वो मुस्कराये। उनकी मुस्कराहट देखकर मैं आहत भाव से बोला- सर आप अगर जानते ही थे तो उसी समय क्यों नही टोका।
अगर उसी समय टोक देता तो ये सबक कैसे सीखते?
मैंने भी उसी समय कसम खाई “आगे से मैं किसी भी भटके हुए को वापस घर जाने देने के लिए रुपये नही दूँगा”।

61-दूसरी कसम
ट्रिन-ट्रिन, ट्रिन-ट्रिन
हॅलो, कौन?
अरे मैं अमरोहा से मिश्रा बोल रहा हूँ। कहाँ हो आप?
लखनऊ मे हूँ, क्यों? इस बार तो एप्लीकेशन देकर आया हूँ।
लेकिन आप औरत को भगा कर क्यों ले गए? आपको पूछने पुलिस आई हुई है।
क्या बात करते हो मिश्रा जी?
मिश्रा-विश्रा कुछ नही, आप फटाफट वापस आ जाओ।

अगले दिन इंस्पेक्टर मेरे कार्यालय मे तहक़ीक़ात कर रहा था।
डॉ साहब, दिखने मे मासूम दिखते हो लेकिन काम शातिरो वाले करते हो।
अनाप-शनाप इल्जाम लगाने से पहले वाकया क्या है, ये तो बताइये?
डॉ साहब, पूछेंगे आप नही, पूछेंगे हम।
तो पूछिए...
तीन दिन पहले आप सरकड़ी गए थे?
हाँ...
क्यों, दूसरे की जोरू भगाने?
क्या बात करते है? मुझे दूसरे की बीबी भगाने की क्या जरूरत है?
ये तो आप जानो, लेकिन सरकड़ी गए क्यों थे?
वहाँ जानवरों के इलाज के लिए कैंप लगाना था।
तो वहाँ क्या किया?
26 गाय और 88 भैंस का इलाज किया। ये कोई जुर्म है?
लेकिन दूसरे की जोरू भगाना तो जुर्म है।
अब उसका इस बात का बार-बार दुहराना मुझे चिढ़ाने की हद तक चुभ रहा था।
अरे किसने कहा कि मैंने दूसरे की जोरू भगाई है?
हाँ, अब आए मुद्दे पर, तो ये बताओ कि उस दिन लौटते हुए अपनी गाड़ी मे एक औरत और उसके बच्चे को बैठा कर नही लाये थे?
अरे तो इतनी दोपहर मे एक औरत अपने बच्चे के साथ सुनसान रास्ते पर लिफ्ट मांगेगी तो मानवता के नाम पर क्या आप लिफ्ट नही देगे? उस औरत ने मुझसे सड़क तक लिफ्ट मांगी, मैंने दे दी। इसमे क्या गलत था? आप चाहो तो ड्राइवर से पूछ लो।
गलत यही था कि वो घर से भागी हुई थी और किसी ने उसको आपकी गाड़ी मे बैठे देखा था। इसीलिए हम आपसे पूछताछ कर रहे थे। खैर आपने उसे कहाँ उतारा था?
बस स्टॉप पर।
आपको हुई तकलीफ के लिए हमे खेद है। लेकिन आगे से किसी औरत को लिफ्ट देने से पहले तहक़ीक़ात कर लीजिएगा कि वो घर से भागी हुई तो नही है। इंस्पेक्टर शरारत से मुस्कराया और मैंने कसम खाई कि अब भविष्य मे किसी औरत को लिफ्ट नही दूँगा।


तीसरी कसम
जिन दोस्तों को आज मेरी तीसरी कसम का बेसब्री से इंतजार होगा, आज उनको निराशा ही हाथ लगेगी क्योंकि “तीसरी कसम” तो श्रध्येय राजकपूर जी के लिए आरक्षित है। अतः नैतिक रूप से मैं तीसरी कसम नही ले सकता।
मेरी अगली कसमें
एक रात “ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का” पे झूमता-गाता हुआ एक समूह मुझे मंडप मे ले गया, जहां मुझे अग्नि के चक्कर कटवाते हुए सात कसमें दिलवाई गई। उन कसमों को पूरा करते-करते अब अगली कसमें खाने का वक्त ही नही मिलता, फिर भी उन सात कसमों के नाम पर यदा-कदा नकेल कस ही दी जाती है।
· 44-Homo sapiens sapiens वो प्रौढ़ विधुर पक्षाघात की स्थिति से गुजर रहा था। सुबह जब सब लड़के अपने- अपने दफ्तर चले जाते थे तब उससे जीवन की एकरसता और खालीपन काटा नही जाता था। उसने ठीक होते ही बिना बच्चो को बताए क्लासीफाइड़ मे विज्ञापन दिया “ आवश्यकता है एक 35- 40 वर्ष की विधवा निःसंतान जीवनसंगिनी की की, जाति- धर्म का कोई बंधन नही”। 3-4 विकल्पों मे से उसने एक क्रिश्चियन महिला को चुना और तीर्थयात्रा के बहाने दूसरे शहर मे रहने चला गया। उसने नई पत्नी के पुराने घर को बिकवा कर संयुक्त नाम से एक घर खरीदा और खुशी- खुशी रहने लगा। कुछ दिनो बाद पत्नी के पैसों से घर चलाने के बाद एक दुकान भी पत्नी के फंड के मिले पैसों से खरीद ली। दुकान चल निकली। अब तक उसके लड़को को भी ये सारी बातें पता चल गई थी। अब लड़के भी जब – तब यहाँ आने लगे थे। उसका पुत्र- प्रपौत्र मोह फिर जाग गया था। एक दिन वो चलती दुकान अच्छे मुनाफे मे बेचकर पुत्रों- प्रपौत्रों के साथ रहने फिर चला गया था। वो क्रिश्चियन महिला फिर से विधवा हो गई थी।

· 45-वो अपने बच्चे के बर्थडे के लिए मेहमानो की लिस्ट बना रहा था। सहूलियत के लिये उसने अपनी डायरी खोल ली जिसमे उसने नोट कर रखा था कि वो किस-किस की पार्टी मे गया है और क्या-क्या दिया है तथा उसके घर पर आयोजित पार्टी मे किसने क्या-क्या दिया है?

· बस के माहौल मे बहुत उमस थी। उस पर से बस की धीमी रफ्तार लोगों को बुरी तरह से चिढ़ा रही थी। अचानक दो जवान लड़कों मे सिगरेट को लेकर आपस मे झगड़ा शुरू हो गया। “आपको पता नही बस मे धूम्रपान वर्जित है, सिगरेट फेंकिए”। “लीजिये फेंक दी, अब चैन पड़ गया”।सभी लोगों का ध्यान उनकी तरफ मुड गया और लोग अपनी-अपनी खीझ भूलकर उनकी तरफ उत्सुकता से मुखातिब हो गए। “फेंक दिया तो कोई एहसान नही कर दिया, ये तो गैरकानूनी था ही”।“बड़े आए कानून सिखाने वाले, खुद तो मुह से शराब की बदबू आ रही है”।“बस मे पीकर बैठना गैरकानूनी नही है, अगर मैं बस मे पीता तो गैरकानूनी होता”।“ हुंह! सूप बोले तो बोले, चलनी बोले जिसमे बहत्तर छेद”। उनकी ऐसी रोचक बातों से लोगों का खासा मनोरंजन हो रहा था और लोग बड़े चाव से उनकी बहस सुन रहे थे। कुछ अतिउत्साही किस्म के लोग तो उनकी बहस मे शामिल भी हो गए। कुछ देर बाद बस का स्टापेज आ गया और वो दोनों जवान लड़के एक दूसरे के गरदन मे बाहें डाल कर हसते हुए बस से बाहर उतर गए।



· 46-अब शादी-विवाह जैसे समारोहों मे कपड़े-जेवर खरीदने के सिवा कोई खास काम तो होता नही है इसलिए लोग बढ़िया से ऐसे समारोह एंजॉय करते है। सो उस शादी मे भी रिश्तेदार-नातेदार अलग-अलग ग्रुप मे बैठ कर चकल्लस कर रहे थे। एक तरफ बहुओं का ग्रुप बैठा चिट्स के माध्यम से बड़ा मनभावन खेल खेल रहा था और रह-रह कर आवाज आ रही थी “हाय ये कितनी लकी है न”। खेल था- “किसकी सास पहले उठेगी”।

कथावाचक : नाम- श्री शैतान सिंह, पुरवा- खूनी पुरवा , ग्राम- झगड़ गाँव, पोस्ट- बदनामपुरी , तहसील- गदरपुर, जिला- ऊधमसिंह नगर। (नोट- ये कथा कथावाचक ने उसके नाम-पते मे खतरनाक शब्दों के हरबेरियम होने पर उठी मेरी जिज्ञासा को शांत करने के लिए सुनाई थी।)तो लल्लन के दादा अपने खेत मे खुश-खुश खड़े थे सो मेरे बुड्ढे के पेट मे हुड़क उठी। बड़ा खुश दिख रिया है, लुगाई ने आज सुबह-सुबह खाने मे क्या दे दिया? अरे आज खेत मे गन्ना बोऊँ हूँ। बस उसकी खुशी से मेरे बुड्ढे की खोपड़ी सटक गई। गन्ना तो बो लेगा, लेकिन जाएगा किधर को ले के। तेरे खेत की मेड़ से होके ही जावूंगा। अब तक उसकी भी खोपड़ी सटक चुकी थी। ले जा के दिखइयो। ले अभी ले जा के दिखा रिया हूँ। ये देख, मैंने गन्ने बोये और उसने कुछ सीके रोप दी। अब मैंने उन्हे काटा और उन सीकों को उसने उखाड़ दिया। अब मैंने उन्हे अपने ट्रैकटर पर लादा और उसने सीकों को अपनी लाठी पर रख दिया। ये देखो मेरा ट्रैकटर चालू हुआ घ ड़ ड़ और ये पहुंचा तेरी मेड़ पर। उधर उसकी लाठी मेरे खेत की मेड़ छूयी और इधर मेरे बुड्ढे की लाठी उसके सिर पर। फिर तो गाँव मे कई मरे और घायल हुए। तो बाबू हमारा इलाका तो ऐसी ही कहानियों से भरा पड़ा है। अब तुम ही बोलो हमारा नाम-पता सही है या नही। (पुनश्च पते पे फिर गौर फ़रमा ले - किसी भी आलोचना से पहले नाम -)

· गुरुमंत्र नए ट्रेनी ऑफिसर ट्रेनिंग की समाप्ति पर अपने-अपने उद्गार व्यक्त कर रहे थे। एक ट्रेनी बोला कि मुझे तो डर लग रहा है कि इतने जटिल नियम-कानूनों के साथ अपनी नौकरी कैसे निभा पाऊँगा। अनुभवी प्रशिक्षक महोदय ने ट्रेनी को ढांढस बँधाया और कहा कि मेरे ये चार नियम गांठ बांध लो फिर नौकरी अपने आप आराम से कट जाएगी। 1-बॉस की इच्छानुसार दो और दो को 0, 4 अथवा 22 बनाने का करतब सीखो। 2-मातहतों के साथ मीटिंग और वरिष्ठों के साथ सिटिंग करने का प्रयास करते रहो।3-या तो लकड़ी लो या तो लकड़ी दो। लकड़ी लेने मे भलाई नही है, इसलिए लकड़ी देते रहो।4-अपनी जानकारी मे कीचड़ भी इकट्ठा करते रहो। जब कोई तुम्हारे ऊपर कीचड़ फेके तो तुम भी उसके चेहरे पर कीचड़ मल दो।ट्रेनी नतमस्तक हो गया।

· गुप्ता जी ने चाट की अपनी तीसरी दुकान पुरानी दुकानों के बगल मे ही खोली और नाम रखा “असली गुप्ता चाट भंडार”। मैंने पूछा “ ये क्या गुप्ता जी, “गुप्ता चाट भंडार”, “पुराना गुप्ता चाट भंडार” और अब “असली गुप्ता चाट भंडार”? वो बोले “अरे भाई, कभी किसी बड़े मंदिर मे गए है तो वहाँ कितने गणेश जी या बजरंगबली या शिवलिंग पाते है”? मैंने कहा “तीन-चार तो होते ही है”। उन्होने फिर पूछा- किसलिए? मैंने कहा पता नही तो उन्होने बताया कि “अरे कही तो श्रद्धा जागेगी और जेब से पैसा निकलेगा। तो इसीलिए दुकाने मेरी ही है और नाम भी एक जैसा, नाम के चक्कर मे आदमी किसी दुकान पे तो गिरेगा ही”।

· आधुनिक काल मे महाभारत का युद्ध चल रहा था। कर्ण के बाणों ने हाहाकार मचा रखा था। लेकिन सूर्य के दिये हुए कवच और कुंडल के कारण अर्जुन के तीरों का उस पर कोई असर नही हो रहा था। कृष्ण और अर्जुन ब्राह्मण के वेश मे उससे कवच-कुंडल मांगने जाते है। वो कवच-कुंडल दे देता है। बाद मे कृष्ण और अर्जुन देखते है कि कवच और कुंडल पे टैग लगा है “ नकली साबित करने पे एक करोड़ का इनाम”।

· अट्टालिका तैयार हो रही थी। वो किशोर भाई वहाँ दिन मे मजदूरी और रात मे चौकीदारी करते थे। देर शाम को वही पे ईंटों का चूल्हा बनाकर एक भाई रोटियाँ बेलता जाता था और एक सेंकता जाता था। जिस दिन ठेकेदार मजदूरी दे देता था, शाम को रोटी के साथ सब्जी भी बन जाती थी वरना तो प्याज और मिर्च के साथ कुटा नमक ही क्षुधापूर्ति का साधन बनता था। कुछ भी हो लेकिन थे दोनों बहुत संतुष्ट। और एक दिन जब अट्टालिका बनकर बिकने को तैयार हो गई तो लोगो ने दो भाइयों मे जबरदस्त झगड़ा देखा। वे दोनों उस अट्टालिका के मालिक थे।

· 47-इंद्रप्रस्थ मे अन्ना की रैली देखने युधिष्ठिर भी पहुंचे। कुछ देर बाद गला प्यास से सूखने लगा तो पास के नल पर पहुंचे। नल खोला तो सूं सूं की आवाज के बाद एक कीड़ा नल से टपका और देखते ही देखते एक यक्ष मे तब्दील हो गया। यक्ष ने अपनी पुरानी आदत के मुताबिक युधिष्ठिर से प्रश्न पूछा " हे युधिष्ठिर! इस रैली के बाद फिर से कौन छला जाएगा? युधिष्ठिर ने उत्तर दिया हे यक्ष! इस बार फिर जनता ही छली जाएगी। यक्ष ने फिर प्रश्न पूछा "तो युधिष्ठिर इस भारत भूमि पर फिर कौन राज करेगा? युधिष्ठिर ने जवाब दिया " हे यक्ष! इस भारत भूमि पर राजपरिवार की अगली पीढ़ी ही हज़ारे उपनाम लगा कर राज करेगी। नल से पानी शर्मसार होकर बहने लगा था।

48-एक रहिन अत्तते, एक रहिन फत्ते और एक रहिन हम,
अत्तते कहिन चलो ऑफिस हो आई, फत्ते कहिन चलो ऑफिस हो आई, हम कहा चलौ हमहू ऑफिस हौ आई।
अत्तते गए फ्लीट से, फत्ते गए फ्लीट से, हम गयन 13 नंबर की बस से।
अत्तते कहिन चलौ लौंडे कै नाम लिखा आई, फत्ते कहिन चलौ लौंडे कै नाम लिखा आई, हम कहा चलौ हमहू लौंडे कै नाम लिखा आई।
अत्तते गए स्विट्जरलैंड, फत्ते गए इंग्लैंड, हम गयन सरकारी पाठशाला।
अत्तते कहिन चलौ आउटिंग कै आई, फत्ते कहिन चलौ आउटिंग कै आई, हम कहा चलौ हमहू आउटिंग कै आई।
अत्तते गए अशोका होटल, फत्ते गए ताज होटल, हम पहुचैन काके दी ढाबा।
अत्तते कहिन चलौ आपन संपत्ती कै खुलासा करी, फत्ते कहिन चलौ आपन संपत्ती कै खुलासा करी, हम कहा चलौ हमहू आपन संपत्ती कै खुलासा करी।
अत्तते के पास लाख रूपिया और मारुति कार, फत्ते के पास लाख रूपिया और अंबेसडर कार, हमरे पास दुई लाख और महिंद्रा का ट्रैक्टर।
अत्तते कहिन ई माया है, फत्ते कहिन ई माया है, हम कहा हमही का बुडबक बनावट ह्या?
· 42-दो कम-बधिरों का वार्तालाप:चैत की खुशनुमा सुबह थी। मेरे ताऊ जी महुआ बीन रहे थे। उधर से उनके बाल सखा गनेशी भी आ गए। गनेशी: राम राम जयलाल. सुबह- सुबह महुआ बीनत हौ।ताऊ जी: नाही गनेशी, महुआ बीनत हई।गनेशी: चलौ बढ़िया हई, हम जानेंन कि महुआ बीनत हौ।

· 43-एक जंगल मे तीन दोस्त थे। बंदर, गधा और खरगोश। तीनों राजा शेर के दरबार मे ही दरबारी थे। यूं तो तीनों दोस्त थे लेकिन स्वभाव मे बड़ी भिन्नता थी। गधा गधे की तरह दिन भर काम मे जुटा रहता था। लेकिन बोलना उसे न आता था। इसलिए सारे दरबार का भार उसके कंधे पर ही रहता था। कोई लाभ भी नही मिलता था, इसलिए दुखी बहुत रहता था। बंदर काम-धाम कुछ न करता था, करता था तो सिर्फ मौज या राजा की चापलूसी। राजा की चापलूसी के कारण उसे लाभ भी मिलते थे। तीसरा था खरगोश न ज्यादा काम करता था न ही राजा की चापलूसी लेकिन राजा के विरुद्ध रहता हो ऐसा भी नही था। हा अनुभवी बहुत था इसलिए राजा जब भी मुश्किल मे रहता था उसे याद जरूर करता था। वो भी अपनी स्थिति से संतुष्ट रहता था। एक दिन गधे ने खरगोश से अपने मन की व्यथा कही तो खरगोश ने कहा तुम भी चापलूसी शुरू कर दो, मौज मे रहोगे तो गधे ने कहा लेकिन मुझे बोलना तो आता ही नही तो खरगोश ने कहा अपने काम मे छोटी- छोटी गलतियाँ करनी शुरू कर दो, फिर कम से कम काम मिलेगा। कुछ दिनों बाद गधा भी संतुष्ट रहने लगा।
बात करीब 15 साल पुरानी है जब जानवरों मे कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम पशुपालकों के बीच अपनी पैठ बना चुका था और भ्रूण प्रत्यारोपण कार्यक्रम भारत मे नया-नया पाँव पसार रहा था। (इन शब्दावलियों से अनजान शहरी मध्यमवर्ग के पाठको को ये बताना उचित होगा कि ये दोनों कार्यक्रम दुधारू पशुओ के नस्ल सुधार योजना से जुड़े हुए है। जहां कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम एक सरल प्रक्रिया है, जिसमे उन्नत नस्ल के सांड के शुक्राणुओं के प्रयोग से गाये गर्भित की जाती है और ये सुविधा लगभग हर पशुचिकित्सालय पे उपलब्ध है, वहीं भ्रूण प्रत्यारोपण कार्यक्रम आधुनिक संस्थानों तक सीमित एक जटिल कार्यक्रम है जिसमे उन्नत नस्ल के सांड और उन्नत नस्ल की गाय से एक बार मे ही कई भ्रूण प्राप्त कर अलग-अलग गायों मे प्रत्यारोपित किए जाते है।)
तो एक सरदार जी अपनी गाय लेकर पशुचिकित्सालय पहुंचे जहां डॉ चतुर सिंह (नाम काल्पनिक है) अपनी तीन पाँव की कुर्सी को चार-छह ईंटों की मीनार से टिकाए हुए नीम के पेड़ के तले बैठे हुए थे।
-हाँ जी पापे जी कैसे आणा हुआ?
-डॉ साहब, गाय कल शाम से बोल रही है, हरी कर दो।
डॉ चतुर सिंह ने गाय के प्रजनन अंग जाँचे तो पाया कि गाय तो पहले से ही तीन-साढ़े तीन महीने की गाभिन है। चतुर सिंह के दिमाग मे झट चतुराई आ गई।
-पापे जी, तुम भी किन पुराने चक्करों मे पड़े हो, अब तो भ्रूण प्रत्यारोपण का जमाना आ गया है। सीधे पेट मे बच्चा गिरवाओ, नौ महीने से पहले ही बच्चा पाओ और अपनी गाय दुहनी शुरू कर दो।
-डॉ साहब, इसमे कितने का खर्चा है?
-जितने महीने का बच्चा डलवाओगे, उतने सौ रुपए लगेंगे।
सरदार जी भी होशियार कम न थे, कुछ सेकेंड मे ही हिसाब लगाया और बोले डॉ साहब आठ महीने का बच्चा डाल दो।
-पापे जी, अभी तो सिर्फ तीन-साढ़े तीन महीने वाले बच्चे की सप्लाई हुई है, वही डाल देता हूँ।
-मूस कितना भी मोटा हो जाय, लोढ़ा नही होगा न। सरकारी हिसाब सरकारी ही रहेगा। अरे जब इतनी तरक्की हो गई है तो आठ महीने वाले बच्चे क्यों नही सप्लाई करते? जरूर बड़े-बड़े लोगों के यहाँ सप्लाई होते होंगे। चलो इस बार जो है वही डालो लेकिन अगली बार आठ महीने वाला ही डालना। सरदार जी ने सख्त हिदायत पिलाई।
डॉ साहब ने भी अपने औजारों से कुछ इधर-उधर किया और सरदार जी से साढ़े तीन सौ रुपये झटक कर अंटी कर लिए। लगभग छह महीने बाद गाय ब्या गई। सरदार जी गदगद। इस दरम्यान डॉ साहब का भी तबादला हो गया और एक पप्पू टाइप के (शरीफ आजकल इसी नाम से पुकारे जाते है) डॉ वहाँ आ गए। सरदार जी की गाय दुबारा बोली तो वो गाय को लेकर फिर पशुचिकित्सालय पहुंचे और डॉ पप्पू को हुकुम सुनाया “डॉ आठ महीने का बच्चा डाल दो”। डॉ पप्पू इस आदेश से पहले तो चकराये लेकिन जब सारा किस्सा सुना तो माजरा समझ मे आया लेकिन उससे क्या होना था सरदार जी तो डॉ पप्पू को खरी-खोटी सुनाते हुए और डॉ चतुर सिंह की वाहवाही गाते हुए अस्पताल से रुखसत हो चुके थे।
क्या समझे?
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एक समय की बात थी जब चांडाल चौकड़ी के सितारे बुलंदियों पर थे। उस समय जब वो आसमान मे विचर रहे थे तब उन्हे सपने मे भी गुमान न था कि कभी वो भी जमीन आयेंगे, लेकिन ये तो प्रकृति का शाश्वत नियम है कि कुछ भी स्थिर नही रहता तो उनके सितारे भी हमेशा बुलंदियों पे कैसे रहते? वक्त ने करवट ली और उनके सितारे भी गर्दिश मे आये और ऐसे आए कि वो जेल की चारदीवारी के भीतर पहुँच गये। कभी जिनको देखकर नाक-भौं सिकोड़ा करते थे, उनके साथ ही लाइन मे सूखी रोटी के लिए खड़ा होना पड़ा। ज्यादा चूँ-चपड़ करने पर लाइन मे पीछे खड़े लोग हाथ-पैर तोड़ने को बेकरार रहते है। वक्त-वक्त की बात है।

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पिंकी चार भाइयों के बाद पैदा हुई खानदान मे इकलौती बेटी थी सो सबकी लाड़ली भी बहुत थी। मजाल कि उसके मुँह से निकली कोई बात मानी न जाए। रहन-सहन सब ऐसा, जैसे कोई राजकुमारी। फिर चाहे वो खिलौने हो या कपड़े सब एकदम अलग और यूनीक। लेकिन आज मेले से लौटने के बाद से ही उसका मुँह फूला हुआ था। बहुत कुरेदने पर वजह मालूम हुई, उसके जैसा सूट टोले की रज़िया भी पहन कर मेले मे घूम रही थी।